आजमगढ़ के रवि मिश्रा: 500 रुपये से करोड़ों तक का सफर

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आजमगढ़ के रवि मिश्रा: 500 रुपये से करोड़ों तक का सफर


आजमगढ़ जिले के छोटे से गाँव सरायमीर में जन्मे रवि मिश्रा की कहानी संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रवि का बचपन आर्थिक तंगी में बीता। उनके पिता रामलाल मिश्रा पाँच बीघा जमीन पर खेती करते थे, लेकिन अनिश्चित मौसम और बढ़ती लागत के कारण आय सीमित थी। माँ सुनीता देवी गृहिणी थीं, जो कभी-कभी पड़ोसियों के लिए पापड़ और अचार बनाकर कुछ पैसे कमा लेती थीं। घर में पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती थी, लेकिन रवि का सपना बड़ा था—कुछ ऐसा करना जिससे उनका परिवार गरीबी से बाहर निकल सके।

संघर्ष के दिन: पढ़ाई और मजदूरी साथ-साथ


रवि बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए, उन्होंने हमेशा अच्छे अंक हासिल किए। लेकिन 9वीं कक्षा तक आते-आते उनके पिता की तबीयत खराब रहने लगी और घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई।

तब 14 साल की उम्र में रवि ने पहली बार काम करना शुरू किया। वह सुबह स्कूल जाते और शाम को पास के कस्बे में एक मिठाई की दुकान पर बर्तन धोने और गुलाब जामुन की चाशनी बनाने का काम करते। इसके बदले उन्हें रोज़ 30 रुपये मिलते थे। गर्मी की छुट्टियों में वे ईंट भट्ठे पर मजदूरी करते, जहाँ वे दिनभर ईंटें उठाते और शाम को थककर चूर हो जाते।

पहला बड़ा सपना: डिजिटल दुनिया से मुलाकात


रवि के गाँव में इंटरनेट कैफे नहीं था, लेकिन जब वे 11वीं में थे, तब उनके एक दोस्त शुभम यादव ने उन्हें शहर के एक साइबर कैफे में ले जाकर इंटरनेट की दुनिया दिखाई। वहाँ पहली बार उन्होंने गूगल पर "कैसे पैसे कमाएं?" सर्च किया। तभी उन्हें डिजिटल मार्केटिंग, एफिलिएट मार्केटिंग, और ई-कॉमर्स के बारे में पता चला।

लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत थी—इंटरनेट और लैपटॉप। गाँव में न तो इंटरनेट की सुविधा थी और न ही उनके पास मोबाइल या कंप्यूटर। इसलिए, रवि हर रविवार 10 किलोमीटर साइकिल चलाकर शहर के साइबर कैफे जाते और सिर्फ़ 10 रुपये प्रति घंटे देकर इंटरनेट का इस्तेमाल करते।

500 रुपये से पहला ऑनलाइन बिजनेस


कॉलेज में दाखिले के बाद, रवि ने अपने दोस्त से 500 रुपये उधार लिए और एक ड्रॉपशिपिंग बिजनेस शुरू किया। उन्होंने एक फ्री वेबसाइट बनाई और सोशल मीडिया के ज़रिए मार्केटिंग करने लगे। उनका पहला प्रोडक्ट था—इंडियन जूतों की ऑनलाइन बिक्री।

पहले महीने में उन्हें पहला ऑर्डर 700 रुपये का मिला। प्रोडक्ट सप्लायर से सीधा ग्राहक के पास भेजा गया, और रवि को 180 रुपये का मुनाफा हुआ। यह छोटी सी कमाई उनके लिए बहुत बड़ी जीत थी, क्योंकि उन्होंने पहली बार इंटरनेट से पैसा कमाया था।

असली सफलता: गाँव के कारीगरों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म देना


रवि ने महसूस किया कि उनके गाँव और आस-पास के इलाकों में कई कुशल कारीगर थे, जो सुंदर मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के खिलौने और हाथ से बने जूते बनाते थे, लेकिन उन्हें बेचने के लिए बाजार नहीं मिलता था।

उन्होंने अपनी बचत और कुछ कर्ज लेकर एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाया, जहाँ वे गाँव के 25 से ज्यादा कारीगरों के उत्पाद बेचने लगे।

पहले साल में ही उन्होंने अच्छा मुनाफा कमाया। धीरे-धीरे उनका कारोबार बढ़ने लगा, और आज उनका बिजनेस करोड़ों रुपये के टर्नओवर तक पहुँच गया।

रवि की सफलता के पीछे के 5 सबक


1. छोटी शुरुआत से मत डरें – रवि ने सिर्फ़ 500 रुपये से शुरुआत की और आज करोड़ों का बिजनेस खड़ा किया।


2. नए कौशल सीखें – उन्होंने खुद ऑनलाइन डिजिटल मार्केटिंग सीखी और इसे अपने बिजनेस में इस्तेमाल किया।


3. लोकल चीजों को ग्लोबल बनाएं – गाँव के उत्पादों को ऑनलाइन बेचकर उन्होंने नए बाजार खोले।


4. धैर्य रखें और मेहनत करें – शुरुआत में नाकामियां आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।


5. तकनीक का सही इस्तेमाल करें – इंटरनेट के ज़रिए उन्होंने अपने गाँव को दुनिया से जोड़ा।



आज रवि कहाँ हैं?


आज रवि न सिर्फ एक सफल उद्यमी हैं, बल्कि उन्होंने अपने गाँव में 50 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया है। उनका सपना है कि भारत के हर गाँव का कोई न कोई उत्पाद ऑनलाइन बिके, जिससे स्थानीय कारीगरों को फायदा हो।

रवि की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो छोटे शहरों और गाँवों में रहते हैं और सोचते हैं कि सफलता सिर्फ बड़े शहरों में मिलती है। उनका संदेश है—

"अगर आपमें सीखने और मेहनत करने की लगन है, तो दुनिया की कोई ताकत आपको सफल होने से नहीं रोक सकती!"

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